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राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा एक महत्वपूर्ण नीति हैजो भारत में खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए अपनाई गई है। इस नीति का मुख्य उद्देश्य है सभी नागरिकों को पोषणपूर्ण खाद्यान्न प्राप्त करने का अधिकार सुनिश्चित करना।


राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा का ध्यान खाद्यान्न की आपूर्ति, पोषण, खाद्यान्न के मूल्यों का नियंत्रण, गरीबी रेखा से ऊपरी और निचली आय वर्ग के लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने का तात्पर्य रखता है। इसके अंतर्गत, केंद्र और राज्य सरकारें खाद्यान्न की आपूर्ति के लिए संगठित होती हैं, किसानों की बेहतरीन आय और जीवनशैली को सुनिश्चित करने के लिए नई किसान योजनाएं लागू करती हैं, और गरीबी रेखा से ऊपरी और निचली आय वर्ग के लोगों को सब्सिडीज़ या मुफ्त खाद्यान्न की प्रदान करती हैं।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 द्वारा खाद्य सुरक्षा की गारंटी दी जाती है और इसके अनुसार, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना चलाई जाती है जिसके तहत आय प्रमाण पत्र के आधार पर न्यूनतम खाद्यान्न की प्रदान की जाती है। यह योजना देशभर में करीब 75% गरीब परिवारों को संलग्न करती है।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा का मुख्य उद्देश्य भारत में भूखमरी और अपभ्रंश को खत्म करना है और सभी नागरिकों को पोषणपूर्ण खाद्यान्न की आपूर्ति सुनिश्चित करना है।


बुनियादी खाद्य सुरक्षा के पाँच मुख्य आधार हैं:


1. उपलब्धता: खाद्यान्न की प्राथमिकता में सुनिश्चित करने के लिए उपलब्धता एक महत्वपूर्ण पहलू है। इसमें खाद्यान्न के उत्पादन, प्रसंस्करण, भंडारण, परिवहन और वितरण के लिए प्रभावी और समर्पित माध्यमों का विकास शामिल होता है।


2. पहुंच: खाद्यान्न की समान और सुरक्षित पहुंच सुनिश्चित करने के लिए अधिकारियों और नियामक निकायों के बारे में जागरूकता, बाजारों की प्रभावी नेटवर्किंग, राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर वितरण और बाजारों की निगरानी का विकास शामिल होता है।


3. पहलूओं की सामरिकता: खाद्य सुरक्षा के लिए, खाद्यान्न की विभिन्न पहलूओं पर सामरिक ध्यान देना महत्वपूर्ण है। यह सम्मिलित प्रबंधन, संचयन, भण्डारण, भंडारण सुरक्षा, खाद्य संरक्षण, उत्पादक समर्थन, प्रभावी किसान उत्पादन, स्थानीय खाद्य संगठनों के विकास, और खेती में वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग जैसे


खाद्य सुरक्षा निम्नलिखित कुछ महत्वपूर्ण आदान-प्रदान शामिल हैं:


1. पहुंच की सुरक्षा: यह सुनिश्चित करता है कि खाद्य सामग्री उचित समय पर उचित स्थान पर पहुंचती है। यह सुरक्षित, व्यावसायिक, व्यापारिक और जनसंचार नेटवर्क के माध्यम से हो सकता है। इसमें खाद्य लागत, अधिकारीकरण, भंडारण, वितरण, लॉजिस्टिक्स, वाणिज्यिकी और परिवहन जैसे कार्यक्रम शामिल होते हैं।


2. उपज की सुरक्षा: यह सुनिश्चित करता है कि उचित मौसम और जलवायु परिस्थितियों में उच्च गुणवत्ता वाली उपज का उत्पादन किया जा सके। इसमें कृषि विकास, मृदा संरक्षण, बीज संरक्षण, जल संरक्षण, खेती की तकनीक, उन्नत जैविक खेती, पशुपालन, पानी प्रबंधन, पर्यावरणीय बागवानी, पशुधन विकास और पशुआहार योजनाएं शामिल होती हैं।



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